कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन ।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।
Your right is to perform your duty only, but never to its fruits. Let not the fruits of action be your motive, nor be attached to inaction.
“तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में कभी नहीं। इसलिए कर्मफल का कारण मत बनो और न ही कर्म करने में तुम्हारा किसी से मोह हो।”
यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उनके परिणामों से अनासक्त रहना चाहिए। यह न केवल हमारे कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि तनाव और चिंता को भी कम करता है।
This verse teaches us that we should focus on our actions and remain unattached to their outcomes. It not only encourages us to fulfill our duties but also helps reduce stress and anxiety.
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं
कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का दिव्य ज्ञान दिया था. गीता में आत्मा, परमात्मा, भक्ति, कर्म, जीवन आदि का वृहद रूप से वर्णन किया गया है. गीता से हमें यह ज्ञान मिलता है कि व्यक्ति को केवल अपने काम और कर्म पर ध्यान देना चाहिए.